"वह लहू किसका है जो हर रोज इतनी बेदर्दी से बहाया जा रहा है? वह हड्डियां कहाँ जलायी या दफ़न की जायेंगी जिन पर से मज़हब का गोश्त -पोस्त चीलें और गिद्ध नोच -नोच कर खा गए।"
मात्र 43 वर्ष की अल्पायु में यह यथार्थवादी कहानीकार ऐसा लिख गया कि आज तक अपनी रचनाकर्मों की वजह से अमर है। गांव, प्रकृति, संस्कृति और अतीत के नॉस्टेल्जिया जैसी उनके यहाँ कोई बात नहीं पायी जाती। काली सलवार, दो कौमें, बांझ, ठंडा गोश्त आदि उनकी कई कहानियों ने बड़े तूफ़ान खड़े कर दिए थे। ये समाज के ज्वलंत मुद्दों पर बेबाकी से लिखी कहानियां थीं।
बेबाकी - "हर वह चीज के बारे में लिखा जाना चाहिए जो हमारे आस -पास हो रहा हो।" मंटो ने जैसा समाज में होता हुआ देखा, ईमानदारी, निर्भीकता एवं सच्चाई से लिख दिया। हंगामा इसी बात पर बरपा। कई पुरस्कारों से सम्मानित इस लेखक को हक़ीक़त लिखने वाला 'बदनाम लेखक' कहा गया।
बंटवारे की त्रासदी झेलते हुए - "मेरे लिए यह तय करना नामुमकिन हो गया है कि इन दोनों मुल्कों में अब मेरा मुल्क कौन सा है।" इसी से जन्मी मशहूर कहानी 'टोबा टेकसिंह'
सच्चाई और हमदर्दी - "वैश्या का मकान खुद एक जनाजा है, जो समाज ने अपने कांधे पर उठाया हुआ है। वह उसे जब तक कहीं दफन नहीं करेगा। उसके बारे में बातें होतीं रहेंगी। "उनकी (तवायफों) रौनक भरी रातों को देखने के हम इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि उनके जीवन के सन्नाटों को हम नहीं देख पाते।"
अपनी कब्र के लिए लिखा - "यहाँ सआदत हसन मंटो लेटा हुआ है। और यहीं उसके साथ कहानी लेखन की कला और रहस्य भी दफ़्न हो रहे हैं।"