"बासों का झुरमुट, संध्या का झुटपुट / हैं चहक रहीं चिड़ियाँ, टी -वी -टी -टूट टूट।"
पंत जी का जन्म उत्तराखंड में जहाँ समाधिस्थ हिमालय का विराट सौंदर्य है, देवदारु, चीड़ के सघन वनों की हरियाली, हिमकिरीट शिखरों की नयनाभिराम शोभा, रंग -बिरंगे फूलों की अम्लान हंसी, वनपाखियों की चहकन मग्न कुर्मांचल घाटी के कौसानी नामक नामक ग्राम में हुआ।
"पुस्तकों से कहीं अधिक कौसानी की हंसमुख, चंचल हरियाली ने, स्वच्छ नीले आसमान ने मुझे सिखाया है।" (मेरा बचपन)
उनकी मां जन्म देते ही गुजर गईं थीं। प्रकृति की गोद में पलते हुए उनकी कलम मुखर हुई।
"माँ से बढ़कर रही धात्रि, तू बचपन में मेरे हित।"
पहाड़ों पर कदम -कदम पर देवी -देवताओं की महत्त्व -प्रतिष्ठा होती है और उनके बीच जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति धर्म, दर्शन और अध्यात्म से बच नहीं सकता। इसलिए पन्त का बालक मन आध्यात्मिकता और तत्व चिंतन की ओर प्रवृत्त हो गया। प्रकृति बीच विचरण करते हुए वे एकांतप्रिय और अन्तर्मुखी हो गए। उनमें अज्ञात के प्रति एक आकर्षण रहा जो बाद में आध्यात्मिक रंगो में परिवर्तित होता गया। वे सतत्तर वर्ष की आयु तक निरंतर लिखते रहे।
प्रकृति के चितेरे और छायावादी युग के महाकवि को श्रद्धावत नमन !