"सपनों के बोझिल पलकों पर / तुम क्यों आते हो छितराने
चाहों के चपल मधुर राही / तुम क्यों आते हो ललचाने?"
कहने वाले आचार्य रामचरण शर्मा 'व्याकुल' और कहते हैं- 'ओ निर्धन तू ही सुन्दर है'
वात्सल्य वंचित जीवन में निर्धनता, संघर्ष, कटु -मिष्ट सहते हुए कवि ह्रदय के अनुभवों पर मनन की अभिव्यक्ति -'मैं छोड़ चुका हंसना रोना'
निरुद्देश्य जीवन को जीवन न मानने वाले बाल्यावस्था में ही क्षुब्ध हो कर सार्थक कुछ खोजने लगे। यह संग्रहालय जुनून और शिद्दत से कुछ कर गुजरने की चाह में उनकी एकल यात्रा का हासिल है।
इसकी नींव उन्होंने "भूख में भोजन कर लेना, तृषा में अथवा जल पीना / नग्न तन को ढकना पट से, इसी को कहते क्या जीना।?" उच्चारते हुए रखी थी।
देश -विदेश के लिए जो धरोहर वे दे गए हैं उसकी सार -संभाल अब उनकी पत्नी श्रीमती सरस्वती एवं पुत्र डॉ शरद शर्मा कर रहे हैं।
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