हे अंतरयामी !
निर्मल करो, उज्ज्वल करो, सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे!
(आतंरिक आनंद की तरफ)
( First Draft Manuscript of Gitanjali )
वे मात्र विलक्षण कवि नहीं थे। अपितु आजीवन, बहुमुखी और वैविध्यपूर्ण रचना -यात्रा करते हुए साधना रत रहे और 'गुरुदेव' कहलाए।
काबुलीवाला पढ़ी, पोस्टमास्टर पढ़ी। फिर गोरा पढ़ी, चोखेर बालि भी पढ़ ली। अंतहीन सिलसिला है।
उम्र का लंबा सफ़र है, पढ़ते जाना है।
'गीतांजलि', बेशकीमती उपहार से प्राप्त आह्लादित पल।
नमन गुरुदेव !