नव गति, नव लय, ताल-छंद नव/नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव,
नव नभ के नव विहग-वृंद को/नव पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनि वर दे! ('निराला')
छह ऋतुओं में वसंत सबसे खूबसूरत व रूमानी ऋतू है। शीत ऋतू को विदा करती व ग्रीष्म ऋतू का स्वागतकरती मदमस्त ऋतू। यह फरवरी - मार्च में (फाल्गुन -चैत्र) अपना सौंदर्य बिखेरती है।
हिन्दू पंचांग वर्ष का अंत (मध्य फाल्गुन) व प्रारंभ (मध्य चैत्र) दोनों इसी ऋतू में संपन्न होते हैं। यौवन की स्फूर्ति, उमंग, ताज़गी व मदहोशी से भरी यह नवयौवना सी खूबसूरत ऋतू है। नव जीवन, नव निर्माण, नव चेतना, नवांकुरों से भरपूर आशा एवं उमंगों भरी ऋतू।
इन्हीं विषेशताओं के चलते वसंत सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ 'ऋतुराज' कहलाता है।
कोयल पंचम स्वर में कुहकी तो वसंत राग बना और गीत बने। इसी ऋतू में आम में बौर आने लगते है, गेंहू में बालिया लहलहाने लगती है, सरसों के पीले फूलों से धरा मुस्काने लगती है। सूर्य देवता के संजीदा होते ही मनोहारी, रूमानी, मदमाती मस्ती से सराबोर होकर सभी झूमने -गाने लगते हैं।
सारी कायनात रंगबिरंगी फूलों से झूमने लगती है तो वसंतोत्सव आ जाता है और आ जाता है रंग -बिरंगा मन को मोहने वाला होली का त्यौहार। पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल आदि में विद्या की देवी सरस्वती की उपासना (श्री पंचमी, वसंत पंचमी) करने की परंपरा है।
पौराणिक कथाओं में वसंत को सौंदर्य व प्रेम के देवता - कामदेव का पुत्र बताया गया है। इनके प्रभाव से गोया इन दिनों प्रकृति व जन मानस उन्मादी हो जाते हैं। सदियों से वसंतोत्सव मनाये जाने के तथ्य मिलते रहे हैं। तब राज दरबार में, देवताओं के दरबार में, कृष्ण का गोपिओं संग प्रेम भरा रास हो हर तरफ उल्लास छाया रहता था। ("ऋतुओं में मैं वसंत हूँ" कृष्ण ने गीता में कहा)
परिवर्तनशीलता प्रकृति का, जीवन का नियम है। 'जिस तरह कठोर शिशिर के बाद मनोहारी, प्यारा वसंत आ जाता है, उसी तरह कठोर दुःख के बाद सुख हर हाल आएगा यह तय होता है।' वसंत इसी संदेश को प्रस्तुत करता है।
ऋतुराज, बरसो झूम कर, इस धरा में तुम्हारा भरपूर स्वागत है।