कोयल न कुहुक यूँ अपने से अनजान, इन्सानों की भीड़ में, किसे है फुरसत / जो सुनें तेरी यह मधुमयी धुन।
आशा, निराशा, प्रेम-द्धेष, सुख-दुःख,
हर्ष-विषाद आदि की 77 कविताओं के इंद्रधनुषी वैविध्य लिए, एक ऐसा कविता संग्रह जिसमें
कवयित्री अपने संवेदित मन के उद्गारों को पाठकों तक पहुंचाने में बखूबी सफल रहीं हैं।
कुछ बानगियाँ :
सकारात्मकता- तेरा दिया दर्द,
छंदों में ढल गया, गीतों में बह गया /दे -देकर दर्द, तू फ़कीर हो गया।
मैं, एक धार नदी की, पर्वत से
गिर, राहों से लड़ /समेटती मलिनता, बनी रहीं, शांत -निर्मल।
किस बात का गुरुर- ज़रा अदब से
पेश आ, ए ज़िंदगी /लय साँसों की टूटने में देर नहीं लगती।
बेबस उद्गार- बेबाकी से, हर जज़्बात
को जाहिर करने का दिल करता है /गुलामियत की आदत से, बगावत करने का दिल करता है।
अभिभूत करते भाव- अतिथि होते
ग़र शब्द, खोल ही देती दर, करने को सत्कार / बचा लेती आत्मा, अपनी संस्कृति की।
माँ को समर्पित- शुक्रिया माँ,
तूने दिलाया यकीन कि / तन्हा नहीं मैं, साथ है तू।
संवाद हीनता- सेतु, संवाद के
ना तोड़, डूब जायेंगे जज़्बात सारे / मिल ना पायेंगे, किनारे।
समाज का दोगलापन- सीरत पर सूरत
चढ़ाना ना आया /शर्मिन्दा हूँ मैं अपनी नज़रों में, ज़माने संग निभाना ना आया।
दोस्त के लिए- बिन चाहे, बिन
सोचे, यह कैसा करम हो गया /समन्दर -पार एक अजनबी दोस्त हो गया।
दर्दीले पलों से, बे -रंग ज़िंदगी
में / खिल उठे रंग, तुम्हारे आने से।
कवयित्री - डॉ देवकान्ता शर्मा
प्रकाशक - सनातन प्रकाशन, जयपुर
sanatanprakashan@gmail.com
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