' स्वप्न और यथार्थ ' यह पुस्तक १९८८ बैच के आई पी एस अधिकारी श्री अरविंद पांडेय के अनुसार उनकी सत्यनिष्ठ अभिव्यक्तियों एवं आत्मीय -स्वीकृतियों का आईना है।
' स्वप्न और यथार्थ ' पुस्तक मानवीय संवेदनाओं को गहराई से महसूस करते हुए लिखी गयी है। इस पुस्तक को उन्होंने धरती के करोड़ों निर्धन और निरक्षर लोगों को समर्पित करते हुए लिखा है -
" जिन्हें 'हम धरती के लोग 'इसके योग्य नहीं बना पाए हैं कि वे इस पुस्तक को खरीद सकें, इसे पढ़ सकें "
इस पुस्तक को लेखक ने आज के हालातों से आहत होकर देश के लिए बहुत कुछ कर गुजरने का जज़्बा लिए हुए लिखा है। पुस्तक तीन खंडों में लिखी गयी है।
पहला पद्य खंड है। जिसमें शुरुआती कई कविताएँ सुन्दर और भावपूर्ण छंदों में लिखी हुई जो जयशंकर प्रसाद और सुमित्रा नंदन पंत की भाव- भाषा को लेकर चलतीं हैं। आज के समकालीन और अकविता के समय में इस तरह का सुन्दर पद्य लेखन रोमांचित करता है। लेखक ने अपने बहुआयामी व्यक्तित्व को दर्शाते हुए इसे अलग -अलग भावों में लिखा है। 'कभी प्रकृति के सौंदर्य पर, देश के नौजवानों के उत्साह -वर्धन के लिए और देश में व्याप्त कुरीतियों, अफसरशाही और भ्रष्टाचार पर। तो कभी स्त्रियों की दुर्दशा पर और कभी हिन्दी की चिंताजनक स्थिति पर। दृष्ट्व्य है -
'प्रकृति प्रेमी रूप में बसंत के आगमन पर उल्लसित होकर कोयल से कहना -
' हे बसंत की मधुर प्रेयसी / शतशः तेरा अभिनन्दन है / नहीं विहंगम नहीं, नहीं, तुम / ग़ुज़्ज़, रहस्य, अदृश्य तत्व हो। '
या फिर -
'धरा का करता था श्रृंगार / चन्द्रिका का सुन्दर-विक्षेप / यथा करती है ईश्वर-भक्ति / बुद्धि पर सत्व -वृत्ति का लेप '
आज के हालातों पर -
हलाहल पीने के भी बाद / बना रहता है जिसका स्वत्व / महायोगी पशुपति के तुल्य / प्राप्त करता है वही शिवत्व '
इसी तरह आज समाज में स्त्रियों की दुर्दशा से विचलित होते हुए आक्रोश के स्वर -
'दिव्य भारत भूमि की जिस कोख ने हमको जना / कुछ करो, उस कोख की तो लाज बचनी चाहिए'
बह गया पौरुष सभी देवों का फिर से एक बार / अब, जमीं पर फिर कोई दुर्गा उतरनी चाहिए। '
बिहार की क्रुद्ध कोसी के तांडव पर जब सैकड़ों जानें गयीं थी तब लेखक का नौकरशाही और भ्रष्ट समाज पर प्रहार करते हुए कहना -
'मन में दानव सा लोभ लिए / मानव ने कैसे पाप किये / पानी बनकर ईमान बहा / कहने को ना कुछ शेष रहा / उन्मत्त हँसी नौकरशाही / गलकर बह गयी लोकशाही '
दूसरा गद्य खंड है- जिसमें देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर लिखा गया है। इसमें अंबेडकर अक्षुण्ण हैं, एम.एफ. हुसैन का माँ सरस्वती की असभ्य पेंटिंग बनाने पर उठे विरोध के स्वर, छुआ -छूत , जाति , भेद -भाव और दलितों और कमज़ोर वर्गों के हक़ के लिए लड़ते , उमड़ते ज़ज़्बात हैं।
इसी खंड में मातृभाषा हिंदी की दुर्दशा पर दुख जताते हुए लिखा है की इसे प्रगति की भाषा मानते हुए हमें इसके सम्मान में लिख कर गौरवान्वित होना चाहिए। यहाँ युवाओं का योग की शक्ति से भी परिचय करवाया गया है। भाषा पर अपनी मज़बूत पकड़ और गांभीर्य को बनाए रखते हुए बहुत से अन्य मुद्दों पर भी लिखा है। लेखक की गहरी अध्ययन-शीलता के दर्शन कई जटिल मुद्दों पर लिखे लेखों को पढ़ते हुए बखूबी किए जा सकतें हैं।
तीसरा गीति खंड - विशेषकर बिहारियों, बिहार प्रेमियों और देश प्रेम को समर्पित करते हुए पाटलिपुत्र, नालंदा, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, पुष्यमित्र, बुद्ध आदि को याद करते हुए लिखा गया है। इसमें देशभक्ति से सराबोर और मज़हबी एकता के गीत भी लिखे हुए हैं।
'जिस धरती पर बुद्ध चलते थे / हम भी उस पर चलते हैं / गुरु गोविन्द जहाँ खेले / हम वहीं कुलांचें भरते हैं '
पुस्तक के अंत में आज़ाद भारत की खुशबू से महकते हुए 'मेरा भारत सबसे प्यारा ' लिखा गया है।
प्रेम, स्नेह, तंज, व्यंग, व्याकुलता, दुःख, चिंता, खुशी, संशय, आशा, विश्वास, देश- प्रेम, मज़हब -प्रेम आदि अनेक भावों से रची बसी यह पुस्तक 'स्वप्न और यथार्थ ' अपनी गूढ़, गंभीर और ज्ञान वर्धक लेखन से बहुत कुछ कह - समझा देती है।
इस पुस्तक में लेखक द्वारा किया गया ज्ञानार्जन आनंदित करता है। जिस तरह ज्ञान की बूँदें समेट -सहेज कर रखी गयीं हैं, वो काबीले -तारीफ़ है। यदि कहा जाय कि कर्म क्षेत्र में अपनी लगन, ईमानदारी, मेहनत और सच्चाई से सफलता के मुकाम पर अग्रसारित रहते हुए श्री अरविंद पांडेय ( पुलिस महानिरीक्षक ) निश्चय ही एक सफल लेखक भी हैं, तो इसमें लेशमात्र भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
( पुस्तक समीक्षा - कलरव पत्रिका के मई-अगस्त अंक २०१३ में प्रकाशित )
'सत्साहित्य प्रकाशन' और प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ये पुस्तक मुझे भेंट स्वरूप प्राप्त हुई है -
बिहार -भक्ति -आंदोलन
४०१ , श्रीगणेश अपार्टमेंट
कवि रमण पथ
नागेश्वर कॉलोनी
पटना - ८०० ००१