Wednesday, March 11, 2020

दुनिया पागल है या फिर मैं दीवाना

जो अध्ययनशील है, उसके लिए विश्व का महाग्रंथ हमेशा खुला रहता है। 
  
#किताबों से मन बहलाना और किताबों में मन लगाना, दोनों एक सी बातें नहीं हैं।  

#पागलपन भी प्रकृति की कैसी सम्पत्ति है कि जिसे पाकर इन्सान बिलकुल निर्लोभ हो जाता है। इस सम्पत्ति के आगे सुख और ऐश्वर्य की लालसा फीकी पड़ जाती है। 

#दुनिया मुझे पागल कहती है। दरअसल मैं पागल हो गया हूँ क्योंकि मेरे जो सिद्धान्त हैं, वे मेरे अपने हैं और मैं उन्हीं सिद्धान्तों के बल पर जीना चाहता हूँ। दुनिया का हर इंसान अपने सिद्धान्त दूसरों पर थोपना चाहता है। 

#जब आदमी जानवरों की तरह रहता था साज श्रृंगार के झमेले से दूर था, तब न उसके मन में कोई विकार था और न उस समय वह छल कपट को अपने ह्रदय में पाले हुए था। मनुष्य जीवन में जैसे जैसे दिखावा आता गया, फरेब और मक्कारी ने उसके ह्रदय में डेरा डालना शुरू किया। 

#दीपक में असंख्य पतंगों को जलकर मरते हुए देख कर भी बाकी पतंगे अपनी प्राण रक्षा की बात नहीं सोचते। यह आकर्षण भी बड़ा विचित्र है। 

और बहुत इसी पुस्तक से...


पागल दुनिया, लेखक - सुधांशु 'शेखर' चौधरी 
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मैथिली 'ई बतहा संसार' उपन्यास 
हिन्दी अनुवाद - डॉ प्रेम शंकर सिंह

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