थोड़े से स्नेह का प्रतिदान
उससे मैं कभी रूबरू नहीं हुई। कई वर्षों से फेस बुक की जान पहचान, शब्दों का आदान -प्रदान, कभी कभार फ़ोन पर बात चीत। अपनी खनकती, चहकती हुई आवाज में बहुत सी हंसी और खिलखिलाहटें समेटे, किस्से -कहानियां कहती वह जिंदादिल लड़की है छाया अग्रवाल। अकोला, महाराष्ट्र के अग्रवाल इंस्टिट्यूट की डायरेक्टर। इतनी कम उम्र में बहुत कुछ हासिल कर लेना क्या होता है इसके लिए कोई छाया को देखे।
जीवन के जिस क्षेत्र में मैं काम करती हूँ वहां आये दिन कई तरह के व्यक्तित्व, उतनी ही जानकारियां, नए विचारों आदि से दो -चार होती हूँ। देखती हूँ सब कुछ होते हुए खुश रहना चंद लोगों को ही आता है। अमूमन हर तरफ निराशा, अवसाद, घुटन, परेशानियां, अनमनापन, शिकायतें, गलतफहमियां, टूटा भरोसा, लुप्त प्रेम और भी न जाने क्या -क्या देखने -सुनने को मिलता है। इसके विपरीत अपनी शारीरिक अपूर्णता को धता बताते हुए हरदम, हर पल जिंदादिली से जीने का जीवंत उदहारण है छाया अग्रवाल।
पिछले करीब दस- बारह वर्षों का साथ है इस हंसती -मुस्काती छाया से। "जिओ तो मस्ती से जिओ, रो कर जिए तो क्या जिए" कहने वाली सदाबहार लड़की बी कॉम, एम् कॉम आदि करने वालों को किस तरह शिक्षित करती होगी? कैसे उसके इंस्टिट्यूट का परिणाम उत्तम, अतिउत्तम आता है? यह सब मुझे ढेरों हैरानी से भर देता है। कैसी परवरिश है ये, कैसा हौसला, कैसी जिजीविषा। इसका श्रेय वह झट अपने बड़े भ्राताश्री प्रोफेसर योगेंद्र अग्रवाल जी को देती है। जिन्होंने उसे हमेशा स्वभिमान से सर ऊंचा करके जीवन जीने की राह दिखाई, ऊंची शिक्षा के प्रति सजग किया है, शान से कुछ कर गुजरने का ज़ज़्बा दिया।
अकोला की सड़कों पर वह हैंड मैनेज कार बिना किसी बाधा के सरपट दौड़ाती है। "दिदू मेरी बात सुनों न। दीदा वो..." कहती हुई इस सदाबहार लड़की के भीतर कितना कुछ है कहने, बताने के लिए। एक बात जो मुझ तक कभी नहीं पहुँचती वह होती हैं इसकी तकलीफें, इसकी निराशाएं। मैंने कहा - बेवकूफ, कोई तकलीफ हो तो वो भी साझा कर लिया कर। बहुत ताकत है मेरे इन कन्धों पर।' तो जोर से हंस कर कह देती है - "दीदा पहले एक बार फिर से कहो न, बेवकूफ। ये शब्द मुझे बहुत अच्छा लगता है। केवल आपके मुंह से हाँ, कोई और कहेगा तो उसकी खैर नहीं फिर, हाँ नी तो। दीदा मैं आपके सामने हमेशा छोटी बच्ची ही बने रहना चाहती हूँ।" उसकी बिना ब्रेक की हंसी है थमती ही नहीं।
"अपना दुःख दर्द भी शेयर करना चाहिए छवि।"
"अरे हट्टो दीदा, वो आपको सुनाने वाले बहुत मिलेंगे। कैसा है कि मुझसे आप पूछो - क्या किया, कितना किया, कैसे, कहाँ, कब..जीवन बहुत छोटा है और काम बहुत हैं।" तब मुझे वे तमाम लोग याद आते हैं जो ढेरों सुविधा संपन्न होने के बावजूद भी छोटी -छोटी बिना वजह की बातों, तकलीफों से भरे रहतें हैं। ऐसे व्यक्तियों से मिलने पर या उनका फ़ोन आते ही मन डूबने लगता है, न जाने आज कौन सी कहानी होगी, कैसे सांत्वना दूंगी। ये दुःख- सुख सुनना संक्रामक रोग से लगते हैं मुझे। जैसा देखो -सुनो वैसा ही मन हो जाता है।
अपने दोनों पैरों को बैसाखी के सहारे टिका कर जग जीतने का ज़ज़्बा रखने वाली यह लड़की किसी जुझारू सैनिक से कम नहीं। जो संसार के इस संग्राम में कुछ कर गुजरने का, कई ज़िंदगियों में बदलाव ला देने का दमखम रखती है। छाया तू ऊपरवाले का चमत्कार है, एक दुआ है। तू हरदम इसी तरह खिलखिलाए, मुस्काए, दुआ और ढेर-ढेर स्नेह।