पता नहीं ये लड़की पास होगी भी कि नहीं?
कौन लड़की?
मेरी बेटी।
हो जाएगी। क्यों?
मैं इसे हमेशा दोस्तों के साथ घूमते और मोबाइल टटोलते हुए ही देखतीं हूँ।
फिर भी इन लोगों के नंबर देखो नब्बे , नियानब्बे प्रतिशत आ जाते हैं।
सच्ची। पढ़ते हुए ये कभी दीखते नहीं।
पढ़ते हुए तो हम दीखते थे। हाथों पर, मुंह पर, कपड़ों पर सब जगह स्याही लगी रहती थी। न टीवी, न इंटरनेट, न मोबाईल। करने के लिए रह ही क्या जाता था। बस पढ़ना। इस बात पर दोनों सहेलियां खिलखिलायीं। अपने समय को सराहती हुई वे वर्तमान को आश्चर्य से देख रहीं थीं। आने वाले समय के प्रति अटकलें लगाने लगीं।