मुझे ताज़्ज़ुब होता है
कि बात क्या थी
हालात क्या थे
फ़िक्र क्या थी
हौसले क्या थे
उम्र क्या थी
ज़ज़्बात क्या थे
बहरहाल जो भी था
बालपन की सुबह थी
यौवन के दिन थे
अलसाई सी शामें थीं और
अलमस्त सी रातें
वो उम्र भी क्या उम्र थी
वो स्कूल के दिन
वो कॉलेज के दिन
ठहाकों कहकहो के दिन
कसकती मदहोशी के दिन
मुझे ताज़्ज़ुब होता है
आखिर वे दिन गए तो गए कहाँ