आज दिल्ली के एक हैड पोस्ट ऑफिस जाना हुआ। वहां सीनियर ऑफिसर की कुर्सी के पीछे एक बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिसमें 1983 से अब तक उस पोस्ट पर कार्य कर चुके करीब 37 अफसरों के नाम अंकित थे।
कमाल की बात ये कि उन 37 नामों में एक भी महिला ऑफिसर का नाम नहीं था। ऐसा कैसे ?? उन अति चुस्त -दुरुस्त अफसर से बस पूछ ही लिया। मुझे वर्कोहॉलिक लोगों से मिलकर कर वैसे भी आनंद आ जाता है।
" ऑफिसर,...इतने वर्षों में एक भी महिला इस पोस्ट तक कैसे नहीं पहुँच सकी ? पहुँचने नही दीं गयीं ? या फिर वे ही पहुँचना ही नहीं चाहतीं ? " वे ठहाका लगा कर हंस दिए।
"अब इसका उत्तर भी तो दे डालिये। जेंविन उत्तर। " मेरी उत्सुकता यथावत थी।
" सही बात तो ये है कि महिलाएं केवल असिस्टेंट पोस्ट तक पहुँचने के बाद ही रुक जातीं हैं। शायद इस कुर्सी की जिम्मेदारियों से घबरा जातीं हैं। बहुत काम होता है इस पद पर ,देर सबेर होना आम बात है। कई ब्रांचेज लिंक होतीं हैं। सब को देखना होता है। और भी बहुत कुछ। "
" पर क्या इसके लिए उन्हें ऑफर की जाती है ?"
" बिलकुल , इसमें कोई भेद भाव नहीं होता , आप खामख्वाह शक़ मत करिये। काफ़ी ठंडी हो रही है , पी लीजिये अब। " वे फिर हंस दिए।
सोचतीं हूँ यदि उनकी बात सच है तो ?? सारे घर, रिश्ते, रिश्तेदारों आदि जैसी कठिन जिम्मेदारियां निभाने के बाद क्या महिलाएं सच में उस हेड ऑफीसर के पद की जिम्मेदारी से घबरा जातीं होंगी ? या फिर घर - रिश्तों आदि की अन्य जिम्मेदारियां आड़े आ जातीं होंगी ?
या फिर..... सवालों की फेहरिस्त... का कोई अंत नहीं...