कल आकाश ज़्यादा स्याह था या चाँद ज़्यादा श्वेत
अपने अपने रूप से गर्वित दोनों प्रसन्न थे
अपनी गहराइयों और खामोशी के साथ
आकाश महोब्बत से सराबोर
चाँद इश्क़ में गरिफ्तार
पूरक एक दूसरे के
आकंठ डूबे प्रेम में
तुझ बिन मैं क्या
मुझ बिन तू क्या
यही है उनकी कविता का स्वर
उनकी कथा का कथानक
दुनिया को भूल कर
एक दूजे के पहलू में समाये
मदहोश दीवानों से
दुनिया ने जी भर सराहा
इश्क़ और महोब्बत की
इस अनूठी दास्तां को
उस स्याह आकाश को
उस संदली चाँद को
जो जानतें हैं महोब्बत करना
वर्षों से खामोश रह कर