Friday, December 16, 2016

खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी


सेन्फ्रेंसिस्को से दिल्ली वापसी थी। चाइना सदर्न की फ्लाइट। उस प्यारी सी बालिका ने मिक्की माउस वाले हेयर बैंड से अपने छितरे हुए बालों को पीछे की तरफ समेट रखा था। अपनी स्मार्टनेस को बनाये रखते हुए उसके डैड का चेहरा उतरा हुआ था। मार्डन बनने की पूरी कोशिश करती हुयी मॉम का चेहरा तमतमाया हुआ। बहरहाल वजह जो भी हो, बालिका खुश थी। कभी कहती। 

"मॉम आपने दद्दू के लिए वो बी पी नापने वाला इंस्ट्रूमेंट क्यों नहीं लिया ? हाऊ बैड।"

"......... " 

"डैड इवन आपने भी दद्दू के लिए वो इवनिंग गाउन नहीं लिया। लेना चाहिए था। दद्दू कितने खुश होते "

" इट वाज टू एक्सपेंसिव...चिल बेबी.. "

" हाउ मीन डैड .... "

"डैड मैं दद्दू को बताउंगी वो पिज़्ज़ा कितना वाव था , नैए....हमें उनके लिए लाना चाहिए था, हाउ सैड... "

"चुप बैठो शैंकी...शट यॉर माउथ....ओके...एनफ ऑफ़ यू ...." मार्डेन माँ ने घुड़का। 

देखा जाय तो बेटा -बहु दद्दू के लिए कुछ लाये हों या नहीं किन्तु पोती ढेर सारी बातें जरूर लायी थी। घर पहुँचने पर स्नेह से भरे और इंतज़ार करते दादा जी से कौन कैसे मिलेगा ? उनसे मिलकर किसको कितनी खुशी होगी ? मिलियन डॉलर का सवाल.... " 


  
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