भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास 'चित्रलेखा' को पढ़ते हुए अद्भुत अनुभूति से भर उठी। उन्होंने अपने दोनों पात्रों श्वेतांक और विशालदेव को उनके प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए अलग -अलग सोच -विचार के गुरुओं के पास भेज दिया था।
श्वेतांक और विशालदेव का प्रश्न था - "पाप क्या है?"
श्वेतांक को भोगी बीजगुप्त के पास और विशालदेव को योगी कुमारगिरि के पास भेजा। उनके जीवन स्रोतों के साथ बहते हुए श्वेतांक और विशालदेव को क्या अनुभव हुए? क्या पाप को लेकर उनकी जिज्ञासा शांत हुई? उन्होंने नृतकी चित्रलेखा से क्या कुछ सीखा? यकीनन बहुत कुछ सीखा होगा।
गुरु न होते हुए भी वह बहुत कुछ सिखाती है। यही सब इस पुस्तक में बेमिसाल अंदाज में वर्णित है। जीवन, प्रेम, पाप और पुण्य के फ़लसफ़े को समझाती अद्वितीय रचना।
गुरु न होते हुए भी वह बहुत कुछ सिखाती है। यही सब इस पुस्तक में बेमिसाल अंदाज में वर्णित है। जीवन, प्रेम, पाप और पुण्य के फ़लसफ़े को समझाती अद्वितीय रचना।
आज के सन्दर्भ में देखें तो सोचती हूँ यदि भगवतीचरण वर्मा आजकल साहित्य के नाम पर लिखा हुआ पढते तो वे कैसा अनुभव करते? कैसी मनोदशा से गुजरते, किस तरह की प्रतिक्रिया देते?
एक अदना सा सवाल, उलझन से भरा दिले नादां...