तुमने कितनी शिद्दत से कहा था
हम तुम मिलेंगे एक दिन
और तब तुम कहोगे
कि तुम करते हो प्रेम मुझसे
परन्तु वह दिन नहीं आया
अभी तक
तुमने कहा था हर सुबह
जब तुम लोगे मेरे नाम को शिद्दत से
तब सारी कायनात जगमगा उठेगी
मेरी पुलक से तुम्हारी मुस्कान से
और वह दिन भी नहीं आया
अभी तक
तुमने ऐसा भी तो कहा था
कि हर शाम डूबते सूरज के साथ
विदा कर दोगे तुम अपनी उदासियों को
फिर हमारे रिश्तों की यादों को
जीवित कर के अपने दिल में
महक उठोगे मोगरे की डाली से
देखो वह दिन भी तो नहीं आया
अभी तक
तुम बोलतें ही क्यों हो ऐसा कुछ भी
जिसे कभी पूरा नहीं कर सकते
तुम चुप ही क्यों नहीं रहते
मुझे पसंद है तुम्हारी खामोशियाँ भी
वही तो है जिसे मैं पढ़ पाती हूँ हर शाम
बड़ी खूबसूरती से तुम्हारी बातों में
दरअसल खामोशी को पढ़ना और समझना
बस यही एक काम आता हैं मुझे
बखूबी !!