Wednesday, December 16, 2015

गगन रंग दे तू मेरे मन का


तुम 
एक शाम 
खामोश रह कर गुज़ारो  
यकीनन महोब्बत हो जाएगी 
खुद से 
और सारे जहां से 
अपने आप को ठीक तरह से 
परखने निरखने और समझने का 
अवसर 
तभी मिलता है 
जब आप इधर उधर की 
वाहियात बातों पर गौर न करें 
यूँ तो 
शामें अक्सर 
गुज़र जातीं हैं बेरौनक 
काम को पीठ दिखा कर पलटते लोग 
धूप 
जो फिसलती है 
पहाड़ियों से घरों की छतों से   
पेड़ों में छिपने लगतें हैं चिचियाते पंछी 
सूरज 
 हाथ छुड़ाता और 
बेमन से अलविदा कह देता  
लालिमा से गुलनार होते गगन से 
कहना 
अलविदा किसी से 
हमेशा बेहद मुश्किल होता है 
अलविदा दिन अलविदा एक और शाम 
कल 
फिर होगी 
हर शहर की एक नई सहर
ताज़गी और जीवन ऊर्जा से भरपूर 



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