Monday, September 14, 2015

खोया -खोया चाँद


मेरी नज़र नहीं उठती अब 
उस चाँद की तरफ 
इसलिए अब मुझसे 
कविता नहीं रची जाती 

शाम अब भी होती है 
बादलों के सिंदूरी टुकड़े 
अब भी सजते हैं 
आकाश के उसी कोने पर 

एक अर्सा बीत गया 
चाँद को देखे हुए 
भावनाओं का तूफ़ान अब 
खामोशी ओढ़कर सो जाता है 

शब्द खो गए संवेदनाएं चूक गईं 
चलो अच्छा ही हुआ 
चाँद को अवकाश मिला 
और मुझे सुकून  

चाँद तुझे तेरी आज़ादी मुबारक 
अब करो अपना सफर पूरा  
रात के स्याह अन्धकार से 
गुलनार होती सहर तक 


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