अजीब समय आ गया है। इंसान अकेलेपन से जूझता हुआ फिर अकेला ही रह जाता है। भरोसा किस पर किया जाय क्यों किया जाय? सब गडमड। अमूमन जो कहा जाता है वह सही अर्थों में और अपने उसी स्वरूप में दूसरे व्यक्ति तक पहुंचेगा, इस पर संशय बना रहता है।
कोई विनम्र बोले तो ख़तरा। 'इसे जरूर हमसे कोई काम होगा।' का ख्याल झट ज़हन में उतर जाता है।सीधा और स्पष्ट बोलें तो अभद्र और बेवकूफ कहलाये।
अपने को समझना और अपने में सुधार लाना सबसे मुश्किल काम। तो भला ये मुश्किल काम कोई क्यों चुने? इससे अच्छा है दूसरे में कमियां खोजते रहो, देखते रहो। परमानन्द की प्राप्ति होगी। अंततः सभी को आनंद और सुख की ही तो तलाश होती है।
जितने दीमाग उतने तरह के ख़याल.... हर व्यक्ति अपनी नज़र और सोच के जरिये दूसरे व्यक्ति की एक छवि गढ़ लेता है।
नकारात्मक लोगों से सीधी बात की जाय तो ....मजाल अगले को उसी रूप में समझ आए? प्रत्येक का यही संशय.....शायद उस पर तंज किया गया है, शायद उपहास या फिर व्यंग। इससे ऊपर कोई भाव जल्दी लोग पकड़ नहीं पाते। कमर कस कर और भृकुटियां चढ़ा कर तैयार। ऐसे व्यक्ति दूसरों को भी अपने इसी सुन्दर नकारात्मक भाव से रंग देतें हैं। आनंद ये कि रंग चढ़ना चाहिए। कोई सा भी चढ़े, जिसे जो अच्छा लगे।
कुछ सकारात्मक टाईप के महा बोर व्यक्ति ऐसे कि उन्हें दूसरे की कही, बताई गलत बात को भी सीधे पकड़ने की आदत होती है। उनसे टेढ़ा बोलो, उल्टा बोलो, मज़ाक करो उन्हें सब कुछ स्वीकार होता है। वहां अक्सर शांति और सुकून अपना बसर कर लेती है। मुझे ऐसे महा बोर किसिम के लोगों पर बड़ा प्यार उमड़ आता है.....सच्ची वाला....