रह -रह कर
लौट -लौट कर हम
फिर वहीं पहुँच जाते हैं
जहाँ से बहुत दूर चले जाना चाहते थे
बचते हैं उन्ही रास्तों की पुनरावृत्ति से
टकराना नहीं चाहते उन विचारों से
जो बाँध लेते हों अपने आप से
कसक बेचैनी उदासी
कभी नहीं चाहता कोई
सभी आकाश होना चाहतें हैं
शामियाने की तरह तना हुआ
दूर दूर तक फैला हुआ
स्वतंत्र साफ़ ऊर्जावान
बंधन, छटपटाहट देते हैं
घबराहट देतें हैं
फिर भी ये मन
न जाने क्यों
बंधने को बेकरार रहता है
पतंग सा क्यों नहीं हो सकते हम?
जो लहराती है आज़ादी से
उस विशाल आसमान में
एक छोर से दूसरे छोर तक