तुमने कहा था चलते रहो
और मैं चलती ही गई
पहुँच गई उस जगह
जहाँ से अब तुम मुझे
दीखते ही नहीं
तुम साथ नहीं चले ?
या फिर मैं तेज चल पड़ी ?
बहरहाल रुकना मेरी फितरत नहीं
तेज चलना तुम्हें आया नहीं
कहा था एक दिन तुमने
मिलेंगे कभी कहीं
जगह तय तो नहीं थी
परन्तु मिलना तय था
किस रोज के लिए तय था ?
तुमने कहा था
चाँद की साजिश है ये
कि उसमे दीदार कर लें
हम एक दूसरे का
चाँद मुस्कराया था
हमारी इस बेवफा सोच पर
सुविधा से चुनी हुई अदा पर
अब देखलो जी भर के
उस ऊपर टंगे निष्ठुर चाँद को
तुम वहां से और मैं यहाँ से
चांदनी चांदनी होते