Thursday, June 11, 2015

चंदा देखे चंदा


तुमने कहा था चलते रहो 
और मैं चलती ही गई 
पहुँच गई उस जगह 
जहाँ से अब तुम मुझे 
दीखते ही नहीं 
तुम साथ नहीं चले ?
या फिर मैं तेज चल पड़ी ?
बहरहाल रुकना मेरी फितरत नहीं 
तेज चलना तुम्हें आया नहीं 

कहा था एक दिन तुमने 
मिलेंगे कभी कहीं 
जगह तय तो नहीं थी 
परन्तु मिलना तय था 
किस रोज के लिए तय था ?

तुमने कहा था 
चाँद की साजिश है ये 
कि उसमे दीदार कर लें 
हम एक दूसरे का 
चाँद मुस्कराया था
हमारी इस बेवफा सोच पर 
सुविधा से चुनी हुई अदा पर 
अब देखलो जी भर के 
उस ऊपर टंगे निष्ठुर चाँद को 
तुम वहां से और मैं यहाँ से 
चांदनी चांदनी होते 


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