मुझ पर
तुम्हारी उदास शामों की
चाय उधार रही
तुम पर
मेरी वीरान रातों की
नींद उधार रही
अब फैसला तुम पर छोड़तें हैं
या हम ये उधारी चुका लें
या बने रहें कर्ज़दार
एक दूसरे के
मिलते रहें यूँ ही एक दूसरे से
शिकवे शिकायत के बहाने
इसके सिवा दुनिया में रखा क्या है
बातें करने के लिए
बहाने चाहिए
वरना
बैठे रह जाते हैं
हम दोनों अक्सर
उस बहती धारा के किनारे
और बहते रहते हैं उस के साथ
चुपचाप खामोशी से
एक दूसरे की
धड़कनें
गिनते हुए