बिना किसी से मिले भी क्या उससे मोहोब्बत हो सकती है? 'लंच बॉक्स' फिल्म देखते हुए सोच रही थी। कुछ ख्याल आते-जाते रहे। संजीदा होते हुए सोच भटक जाती थी।फिल्म जितनी धीमी गति से चलती है, उसके लंच बॉक्स में प्यार उतनी ही तीव्र गति से पनपता रहा। पूरी फिल्म अंत तक बांधे रखती है। टोटल पैसा वसूल फिल्म। अपनी हर फिल्म की तरह 'लंच बॉक्स' में भी इरफ़ान मियाँ धमाल हैं, साथ में निम्रत कमाल।
सवाल फिर भी वहीं था। क्या असल ज़िंदगी में ऐसा होता है? बिना किसी से मिले प्यार जैसा कुछ…? नहीं होता। तभी तो हम फिल्म देख कर कल्पनालोक में विचरण करते हुए उन पलों को जी लेते हैं। या शायद हो जाता होगा, आधा -अधूरा सा, याने की एक तरफ़ा जैसा…अमूमन इन्फ़ेचुयेसन जैसा कुछ....जिसमें दूसरे पक्ष को पता भी नहीं चलता होगा। समय के साथ वही प्यार दोस्ती में बदल जाता होगा, और कुछ समय बाद दम तोड़ देता होगा। ऐसे प्रेम का अंजाम यही होता है। तब भी क्या फर्क गिरता है। इसी का नाम ज़िंदगी है।
अब यदि किसी से वर्षों तक भी मिलना न हो सके और रिश्ता बना रहता है। तब निश्चित ही कुछ तो बात होती है ऐसे रिश्ते में। एक फील बनी रहनी चाहिए। सब कुछ उसी फील का कमाल होता है। वही फील जो पूरी फिल्म के दौरान ईला और फर्नेंडीस को महसूस होती रही। वही फील जो उन दोनों के साथ हमको होती रही। इरफ़ान ऐसे अद्भुत कलाकार हैं जिनके साथ हर चरित्र को बखूबी जिया जा सकता है। अलविदा कलाकार! यादों में रहोगे, हमेशा...