Thursday, March 12, 2015

आधारशिला पत्रिका के फरवरी अंक २०१५ में प्रकाशित मेरी कहानी - निर्वासिता

सम्पादक  - डॉ  दिवाकर भट्ट 


उसका पति फ़ौजी मदन सिंह जब भी छुट्टियों में घर आता, उसके लिए हमेशा मिठाई, किनारी वाली धोती और इंगूर लाता था। सांवली रंगत वाली, बुरांश के फूल सी खिली हुई, पहाड़ी झरने सी उछश्रृंखल और सुतवाँ नाक वाली खूबसूरत मोहिनी जब अपने तेल से भीगे काले बालों की लम्बी चोटी बनाती और मांग में मदन का लाया हुआ लाल इंगूर लगाती, टिकुली लगाती तो गाँव की सभी औरतों को उसके भाग से रश्क होने लगता। वे चुहल करती हुई कहती। "बड़ी भगवान् है रे माहि तू जो तुझे इतना प्यार करने वाला आदमी और इतने अच्छे घरवाले मिले ठहरे।" ..........



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