Monday, January 5, 2015

चाँद आहे भरेगा


अर्सा बीत गया चाँद को देखे हुए 
पिछली बार जब देखा था 
वो अधूरा था चुपचाप था 
तब शाम कच्ची थी और 
आकाश हैरान 

ख्वाबों से भरी हुई 
अधूरी सी नींद और 
नींद से बोझिल पलकें 
चाँद को खोजती आँखें 
होकर नींद से बेज़ार 
होने लगतीं हैं मायूस और 
करने लगतीं हैं 
इंतज़ार बेशुमार 

अपने हाथों की 
बनती बिगड़ती लकीरों में 
देखा था मैंने चाँद को 
ये खो गया कहीं 
कोहरे में छुपा है 
या फिर रूठ गया 
असमंजस और धुंध से भरी  
ठंडी स्याह रात में लिपटा 
ये खामोश दिल 
उसके इंतजार में  
सहमा हुआ है और 
चाँद ओझल 


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