अर्सा बीत गया चाँद को देखे हुए
पिछली बार जब देखा था
वो अधूरा था चुपचाप था
तब शाम कच्ची थी और
आकाश हैरान
ख्वाबों से भरी हुई
अधूरी सी नींद और
नींद से बोझिल पलकें
चाँद को खोजती आँखें
होकर नींद से बेज़ार
होने लगतीं हैं मायूस और
करने लगतीं हैं
इंतज़ार बेशुमार
अपने हाथों की
बनती बिगड़ती लकीरों में
देखा था मैंने चाँद को
ये खो गया कहीं
कोहरे में छुपा है
या फिर रूठ गया
असमंजस और धुंध से भरी
ठंडी स्याह रात में लिपटा
ये खामोश दिल
उसके इंतजार में
सहमा हुआ है और
चाँद ओझल