जाने और आने का सिलसिला उम्र भर चलता रहता है..अनवरत।
क्या पाया, क्या खोया? क्या सीखा, क्या सिखाया? जीवन का आधा हिस्सा इसी उहापोह
में बीत जाता है। बाकी का आधा हिस्सा अपने आप को समझने के लिए कम पड़ जाता
है।
कई बार यूं ही अकेले, सूने पहाड़ी सर्पिलाकार रास्तों पर दूर तक चलते रहने पर अपने आप से रूबरू होने का अवसर मिल जाता है। तब उन सड़कों पर का सूनापन हमारे भीतर तक समाने लगता है। उस सूनेपन और खामोशी को चिड़ियों का कलरव, झींगुरों का आलाप और साथ में मिलती -छिपती नदियों की छलछलाहट बहुत हद तक कम करने पर आमादा रहते है। इनका आकर्षण इतना तीव्र होता है कि हमें विचलित करने लगता है। परन्तु यही वह समय है जब हमें अपने आप को संभाल कर उस विलक्षण खामोशी को अपने भीतर उतारना होता है।
कई बार यूं ही अकेले, सूने पहाड़ी सर्पिलाकार रास्तों पर दूर तक चलते रहने पर अपने आप से रूबरू होने का अवसर मिल जाता है। तब उन सड़कों पर का सूनापन हमारे भीतर तक समाने लगता है। उस सूनेपन और खामोशी को चिड़ियों का कलरव, झींगुरों का आलाप और साथ में मिलती -छिपती नदियों की छलछलाहट बहुत हद तक कम करने पर आमादा रहते है। इनका आकर्षण इतना तीव्र होता है कि हमें विचलित करने लगता है। परन्तु यही वह समय है जब हमें अपने आप को संभाल कर उस विलक्षण खामोशी को अपने भीतर उतारना होता है।
ये खामोशी अद्भुत होती है। इसे अवश्य ही महसूस करके देखना चाहिए। ये जरूरी
नहीं कि हमारे साथ या फिर हमारे इर्द -गिर्द हरदम कोई बना रहे। अपने
आप से मुलाकात करवाता अकेलापन, भीतर -बाहर की खामोशियां और सूनापन, यह कमाल
का संयोग किस कदर संजोने योग्य होता है ये केवल महानगरों की भागम -भाग झेलने वाले
व्यक्ति ही समझ सकतें हैं।
बहरहाल जाते हुए वर्ष 2014 तुम्हें भी अलविदा! तुम्हारा साथ कई
नाटकीय उतार -चढ़ावों के चलते बेहद शानदार रहा। इसी का नाम जीवन है। यात्राएं,
संशय, उलझन, कुछ परेशानियां, थोड़ी थकन, आकाश भर खुशियां और मुट्ठी भर
शिकन…मायूसियां और अफ़सोस......नहीं अफ़सोस बिलकुल भी नहीं। अफ़सोस करना
मेरी फितरत में नहीं है। जो हुआ, ठीक रहा। कुल मिलाकर यह वर्ष खुशियां
बिखेरता रहा।अलविदा कहना अच्छा नहीं लगता। यह शब्द अपने में घबराहटों और संवेदनाओं
की नमी लिए रहता है। इसलिए नए वर्ष 2015 का आगाज़ करते हैं।
नए वर्ष 2015 की अनंत शुभकामनाएं !!