Monday, September 22, 2014

हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे


बड़ी शिद्दत से
लिखने बैठी हूँ  
एक प्रेम कथा 
कुछ शब्द उधार के लिए 
कुछ लम्हे प्यार के माँगे 

उमड़ते जज़्बातों के    
हर लफ्ज़ संजो लेती हूँ 
यादों के घरोंदे में 
कुछ वक्त बिता देती हूँ 

तुम जब नहीं थे 
कुछ भी नहीं था 
वीरां थी दुनिया 
सब अजनबी थे 

तुम्हारी खुश्बू के इत्र से 
मेरी दुनिया महकती है 
मेरी शामें आबाद हैं 
मेरी हँसी चहकती है

तुम से जग आबाद है  
तुम से रब मेहरबां 
तुम से ही संगीत है 
तुम से ही ये जहां 

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