बेख़याली में दोनों
उसी जगह पहुँच जाते हैं
जहाँ मिला करते थे
बिछड़ जाने से पहले
धड़कनों को संभाला और
नज़र भर कर देखा एक दूजे को
इस उम्मीद से
कि कौन करेगा पहल
कश्मकश में दोनों खामोश रहे
न वो कुछ पूछ सका
न वो कुछ बता सकी
एक
और
दिन बीत गया
यूँ ही आह भरते हुए
चले जाते हैं दोनों
विपरीत दिशाओं में
फिर से बिछड़ जाने को
बेख्याली ने दिया था
एक और अवसर
पास आने का
दोनों को बखूबी आता है
हर वो अवसर गँवा देना
जो प्रेम बुनता हो
इस तरह कभी
मुकम्मल नहीं होती
उनकी प्रेम कथा
हर प्रेम कथा
प्रेम से शुरू होकर
प्रेम पर ही हो जाती है ख़त्म