Saturday, September 6, 2014

एक अकेला इस शहर में


बेख़याली में दोनों 
उसी जगह पहुँच जाते हैं 
जहाँ मिला करते थे
बिछड़ जाने से पहले 

धड़कनों को संभाला और 
नज़र भर कर देखा एक दूजे को 
इस उम्मीद से 
कि कौन करेगा पहल 
कश्मकश में दोनों खामोश रहे 
न वो कुछ पूछ सका 
न वो कुछ बता सकी 

एक 
​और ​
दिन बीत गया 
यूँ ही आह भरते हुए 
चले जाते हैं दोनों
विपरीत दिशाओं में 
फिर से बिछड़ जाने को 
बेख्याली ने दिया था 
एक और अवसर 
पास आने का 

​दोनों को बखूबी आता है ​
हर वो अवसर गँवा देना 
जो प्रेम बुनता हो 
इस तरह कभी 
मुकम्मल नहीं होती 
उनकी प्रेम कथा 
हर प्रेम कथा 
प्रेम से शुरू होकर 
प्रेम पर ही हो जाती है ख़त्म 

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