Friday, August 29, 2014

औरत खुद गवाह है


औरत बना लेती है 
पल भर में कई रिश्ते 
दो घड़ी बाजार में मिले 
या फिर बैंक में 
सिनेमा हॉल में 
या फिर मॉल में 
किसी के जीने में मिले 
या फिर मातम में 
सोहर गाना हो या फिर 
पढ़ना हो मर्सिया 
हँस लेती है और रो भी लेती है 
औरत निभा देती है 
घर-बाहर के कई काम 
और बना लेती है खूब बातें 
मुझे हैरत होती है 
उन औरतों को देख कर जो 
मात्र खाना बनाने खिलाने 
और बतियाने में 
कर देतीं हैं स्वाहा 
अपनी तमाम ज़िंदगी को 
यह सब देखा है हमने 
मूक गवाह बन कर