औरत बना लेती है
पल भर में कई रिश्ते
दो घड़ी बाजार में मिले
या फिर बैंक में
सिनेमा हॉल में
या फिर मॉल में
किसी के जीने में मिले
या फिर मातम में
सोहर गाना हो या फिर
पढ़ना हो मर्सिया
हँस लेती है और रो भी लेती है
औरत निभा देती है
घर-बाहर के कई काम
और बना लेती है खूब बातें
मुझे हैरत होती है
उन औरतों को देख कर जो
मात्र खाना बनाने खिलाने
और बतियाने में
कर देतीं हैं स्वाहा
अपनी तमाम ज़िंदगी को
यह सब देखा है हमने
मूक गवाह बन कर