तुम कभी ज़िंदगी से इतनी दूर गए हो कि ये भी भूल सको कि एक दिन इस मोह -माया की दुनिया में पलट कर वापस भी आना होगा.......... नहीं न ?
कभी -कभी सब कुछ भुला कर इस तरह चल देना चाहिए। बहुत दूर निकल जाओ और बिलकुल भूल जाओ कि देर सबेर तुम्हें यहाँ पर लौटना है। तब आता है सफर का असली आनंद।
उस दिन सफर शुरू किया था बस यही याद रहता है। वापस आने पर जब होश संभलता है तो हम चौंक उठते हैं। अब इस पर कुछ वक्त तक चिंतन किया जा सकता है। हम अब तक कहाँ थे , क्या किया , क्या देखा, सब ख्वाब था या हक़ीक़त, क्या सीखा, क्या जाना , क्या याद रहा, क्या भूल गए , क्या छोड़ गए थे, क्या साथ ले आए ?
बहुत दिनों के बाद जब अपनी ज़िंदगी में वापस आओगे। तब तुम्हें मेरी ही तरह अपने घर का वो सुकून भरा कोना बहुत भायेगा। अपने बड़े से मग में भरी हुई चाय और फूलों की खुश्बू से महकते सिरहाने के साथ रहोगे, तब पाओगे कि आज इससे खूबसूरत कुछ भी नहीं है। ज़िंदगी तुम बेहद हसीन हो।
और तुम जुकरबर्ग किसी गलतफहमी में मत रहना। सीधी और साफ़ बात कहना मुझे खूब पसंद है। तुमसे और कुछ वक्त के लिए नाराज़गी बनी रहेगी।
वैसे भी धीरे - धीरे अब मुझे अपनी खामोशियों के साथ रहना, रास आने लगा है …………