Wednesday, May 14, 2014

इस मोड़ से जाते हैं


एक सफर खत्म होते ही 
दूसरा हो जाता है शुरु 
इस तरह हमेशा 
सफर में रहता है आदमी 
हर थोड़ी दूरी पर 
एक मोड़ आ जाता है 
कुछ बदलने की उम्मीद से 
आशान्वित होता है मन 
और मुड़ जाता है उस मोड़ पर 
ज़िंदगी मे बदलाव जरूरी है 
बहुत से मोड़ आते हैं हर जीवन में 
कुछ बदल देते हैं जीवन 
कुछ रह जाते हैं खड़े वहीं पर  
जो रुक गया वो जीवन नहीं 
जो बहता रहा वो नदी सही  
कल -कल छल -छल ही जीवन है 
जो बेआवाज़ रहा वो तालाब बना 
माना कि खिलते हैं कमल 
इसी तालाब में 
परन्तु खिलते यहीं 
और मुरझाते भी यहीं हैं 
क्या इतना ही जीवन है ?
कुछ तो सुवास आए 
कुछ तो बहार आए  
तालाब से अच्छा नदी बनो 
खड़े रहने से अच्छा मोड़ मुड़ चलो 
न जाने कौन सा मंज़र हो 
उस मोड़ से आगे 
कुछ तो बदलाव हो 
इसी हौसले के साथ 
चलते चलो बढ़ते चलो  
सफर जीवन का कभी खत्म न हो 
एक हो पूरा तो दूसरा शुरु हो

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