Thursday, March 20, 2014

उस मोड़ से शुरू करें फिर है ये ज़िंदगी


सुबह की लालिमा से 
दमकता हुआ हर चेहरा
शाम के धुंधलके तक 
रोज़ ही कुम्हला जाता है 
यही सब देखने के लिए 
हर घर में एक दर्पण होता है 
और भी बहुत कुछ दीखता है 
चांदी से चमकते इस दर्पण में 
दिखता है वही एक चेहरा 
कितने ही भाव बदलते हुए 
कभी बेइंतहा चमकता 
खुशी और उल्लास से 
कभी मुरझा जाता है 
दर्द और वीरानी से
थकन और ऊब भरे दिन  
इसमें देखने चाहिए 
रंगीन अक्स 
अपने ही विचारों के 
जो ला सके होंठों पर 
एक गुलाबी मुस्कान 
बीत जाए कुछ इस तरह 
दिन का आखिरी प्रहर
देखते हुए प्यार के सपने 
नींद के आगोश में समा कर 
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