सुबह की लालिमा से
दमकता हुआ हर चेहरा
शाम के धुंधलके तक
रोज़ ही कुम्हला जाता है
यही सब देखने के लिए
हर घर में एक दर्पण होता है
और भी बहुत कुछ दीखता है
चांदी से चमकते इस दर्पण में
दिखता है वही एक चेहरा
कितने ही भाव बदलते हुए
कभी बेइंतहा चमकता
खुशी और उल्लास से
कभी मुरझा जाता है
दर्द और वीरानी से
थकन और ऊब भरे दिन
इसमें देखने चाहिए
रंगीन अक्स
अपने ही विचारों के
जो ला सके होंठों पर
एक गुलाबी मुस्कान
बीत जाए कुछ इस तरह
दिन का आखिरी प्रहर
देखते हुए प्यार के सपने
नींद के आगोश में समा कर