एकालाप उस रास्ते की तरह होता हैं
जहाँ से आना नहीं होता पलट कर
चलते रहो बिना थके तब तक
जब तक टूट कर बिखर न जाओ
आँखें बोझिल न हो जाए
पैर साथ देने से इंकार कर दें
न कोई मुकाम न मंजिल उनकी
बस एक ज़िद्दी धुन सा
बजता रहता है ज़हन में
करता हैं बातें अपने आप से
और मुलाकातें खुद से
देता है हौसला बढ़ते रहने का
फिर एक दिन लड़खड़ाता हुआ
अपनी इसी ज़िद्द में वो
खो जाता है हमेशा के लिए
और तोड़ देता है दम
बीच सफ़र में कहीं
वहीं रास्तों की बाहों में
इस तरह लिखा जाता है
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