Tuesday, February 25, 2014

धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो


               
एकालाप उस रास्ते की तरह होता हैं 
जहाँ से आना नहीं होता पलट कर 
चलते रहो बिना थके तब तक 
जब तक टूट कर बिखर न जाओ 
आँखें बोझिल न हो जाए 
पैर साथ देने से इंकार कर दें 
न कोई मुकाम न मंजिल उनकी 
बस एक ज़िद्दी धुन सा  
बजता रहता है ज़हन में 
करता हैं बातें अपने आप से 
और मुलाकातें खुद से 
देता है हौसला बढ़ते रहने का 
फिर एक दिन लड़खड़ाता हुआ 
अपनी इसी ज़िद्द में वो 
खो जाता है हमेशा के लिए
और तोड़ देता है दम 
बीच सफ़र में कहीं 
वहीं रास्तों की बाहों में  
इस तरह लिखा जाता है 
एक और यादगार पृष्ठ 
जीवन के इतिहास का 
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