जाड़ों की खनकती सर्द सुबह और गुनगुनाती दोपहरों से मुझे बहुत प्रेम है। वैसे साँवला बदलाया हुआ मौसम और भीतर तक सिहराने वाली ठण्ड भी मुझे रूमानी कर देती है। इन दिनों जब मुझे कोई विशेष काम नहीं होता और मन किसी भी तरह नहीं बहलता, तब में जी भर कर केवल और केवल घूमने चल देती हूँ।
किताबों की बंद कमरे वाली दुनिया के अलावा भीड़ से कहीं दूर घूमना। दिल बहलाने के लिए इससे सुन्दर दूसरा कोई साधन मेरे पास नहीं है। मन तो करता है पूरी दुनिया घूम आऊँ ..........देश -विदेश ,गाँव, शहर, क़स्बे, जंगल, यहाँ तक की चाँद पर भी……बिलकुल अकेले…… जहाँ किसी से बोलना न पड़े…… बस सारी दुनिया को देखते और समझते रहो।
जानती हूँ यदि एक सिरे से घूमना शुरू कर दूँ तो ये जन्म कम पड़ जाएगा। सारा कुछ नहीं देख सकूँगी। मन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए न जाने कितने जन्म और लेने पड़ेंगे। और अपने इस शौक के लिए मैं खुशी -खुशी कई जन्म लेने को तैयार हूँ।
यदि कुछ रोमांचक लगता है तो जहाँ -जहाँ भी घूमती हूँ वापस आकर उन्हें यहाँ किस्से -कहानी के तौर पर लिख ही देती हूँ। उन घुमक्कड़ मित्रों के लिए जो मेरे संस्मरणों से लाभान्वित होते हैं। मैं भी उनके शुक्रिया मेल आने से खुश हो जातीं हूँ।
बनी रहे ये भटकन और ये रुमानियत !
सुबह खुशनुमा शाम मस्तानी
रात के आसमां में चाँदनी सुहानी
दरख्तों से लिपटती हवा हो दीवानी
चिड़ियों का कलरव तितलिओं की जवानी
मचलते झरने और नदियों की रवानी
जंगल की खुश्बू हों राहें अनजानी
या रब कुछ इस तरह भटकते
कट जाए ज़िंदगानी