कितना अच्छा होता
जो न छलक आती
दिल की बात जुबां पर
एक खूबसूरत भरम बना रहता
एक सुंदर सा ख्वाब सजा रहता
देखो इसी से सीख लें कुछ
अटल विश्वास से भरे
इस देवदार को देखो
प्रेम से खड़ा मुस्कुराता है
कभी कहता है क्या,कुछ भी किसी से
देखो उसी से सीख लें कुछ
उस हिमाच्छादित हिमाला को देखो
किस इत्मीनान से खड़ा है
शान से देह तान कर
गर्व से मस्तक ऊँचा कर
देखो ज़रा उसी से सीख लें कुछ
इन छलछलाती नदियों को देखो
किसी से कोई आसक्ति नहीं
अवरोधों से न रुकती हुई
चलती रहतीं हैं निरंतर
खिलखिलाती मचलती बलखाती
देखो न इसी से सीख लें कुछ
उस चाँद को भी तो देखो
खिड़की के झीने पर्दों के पीछे से
झाँकता है रिझाता है खिजाता है
फिर प्रेम से गले लगाता है
देखो तो उसी से सीख लें कुछ
देखो न कुछ तो सीख लें