Saturday, November 9, 2013

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो


कुछ मित्र अपनी नायाब यादों की वजह से दिल में विशेष जगह बना लेते हैं। अंजलि भरी हुई देह, साफ़ रंगत, प्यारी आँखों और सुतवां मासूम सी नाक वाली सुंदर लड़की थी। उस पर वह अपनी ऊँची बुलंद आवाज़, गज़ब का मस्ती भरा अंदाज़, जिंदादिल और सदाबहार हंसी हमेशा साथ लिए रहती है। गोया तकलीफें उसे कभी छू भी न सकीं हों वाला उसका अंदाज़ कमाल का है। पाँच वर्ष पहले हम दोनों की दोस्ती किसी मित्र की जन्मदिन की पार्टी में शुरू हुई थी।

मैं आईस बाक्स, चाह कर भी किसी से जल्दी खुल नहीं पाती। अंजलि और मैं दूर से एक -दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा देते थे।

जैसा की अमूमन होता है उस दिन भी वैसा ही हुआ। कुछ समय बाद पार्टी में ग्रुप बन गए। हम दोनों ही शायद मेज़बान के अलावा और किसी को नहीं जानते थे। जो बोलने लगता हम दोनों उस की तरफ गर्दन घुमा कर उसे सुनने लगते। उकता कर अंजलि मेरे पास आ गई। बोली।

"यार तुम ऐसे लुक्स दे रही हो कि बॉस दूर से देख कर स्माईल दे दी न तुम्हें, अब चुप कर के वही तक सीमित रहो। ऐसा क्या?"

"नहीं -नहीं।" क्या कहती।

"हम लोग कब तक इन @$@$^&&$* को सुनते रहेंगे, इनका मुँह देखते रहेंगे?" 

"मेरे पास तो बोलने के लिए कुछ है नहीं, तुम्हारे पास है तो बोलो। नहीं तो इनकी ही सुनों।"

"इनकी ऐसी की तैसी। ये @&* तुम पहली बार आई हो न, नहीं समझोगी। थोड़ी देर में देखना इनके तमाशे…" वह जोर से हंस दी। उसके मुँह सॆ गालियाँ सुनकर मुझे  हँसी आ रही थी। वो पहली ऐसी महिला थी जो गाली भी मस्ती में दे रही थी। कोई भी मित्र उसकी गालियों का बुरा नहीं मानती थी। उनका कहना था कि उसकी गालियों में ही उसका बेइन्तहा प्यार होता है। तम्बोला शुरू होने को था।

मुझे भीड़ में सहज होना कभी नहीं आया और न ही तम्बोला खेलना। खाना हो चुका था।उस फुल ऐसी वाले हाल में भी टिश्यू से पसीना पोंछती हुए मैंने मेजबान मित्र से जाने की इज़ाज़त ली। तेजी से सीढियाँ उतर रही थी कि पीछे से अंजलि की आवाज आई।

"क्या हुआ भूत पीछे लग गया? या फिर कुत्ता?"

"अरे नहीं, मुझे भीड़ और इंसान डराते हैं। भूत या कुत्ता नहीं।" 

"आई न्यू इट। तुम्हारे लिए थ्री इस ऑलवेज अ क्राउड? अपना मोबाइल नम्बर दो, जल्दी।"

"फोन पर समझ नहीं आता, क्या बोलूंगी?…इसलिए…जाने दो।" मैं अनमनी हुई। 

"भाव मत खाओ। बातें मैं खुद कर लूंगी, तुम बस सुन लेना। तुम महा बोर इंसान हो, तुम्हें ऐसा किसी ने नहीं कहा? एनी वे तुम मुझे पसंद हो।" तब से आज तक हम दोनों की दोस्ती और स्नेह बरकरार है। 

आज उससे लगभग तीन महीनों बाद मुलाकात हुई। उसका टूटा हुआ आत्मविश्वास और मायूसी देख कर मैं बेहद विचलित हो गई। परिस्थितियां इंसान को कितना बदल देतीं हैं। खूब देर बतियाये। वह अपने चिरपरिचित अंदाज में कहकहे भी लगाती रही किन्तु कष्टों की हल्की छुअन उसकी बातों में समाई हुई थी।

इन तमाम वर्षों में हम दोनों के बीच जो नहीं बदला वो था -  वो बिना गाली दिए लोगों के बारे में बातें नहीं कर सकी और मैं पार्टी में जाकर तम्बोला खेलने के लिए राजी नहीं होती हूँ। "हम कभी नहीं बदलेंगे, है न एनी?" 

"सुधर जा स्टियुपिड, किसी से प्रेम जताते हुए अपनी सुविधानुसार उनका नाम बिगाड़ देने का हुनर तुझे खूब आता है। सिली ! वह अपने उसी बिंदास अंदाज़ में तमक कर परन्तु ऊंची आवाज में हंसते हुए बोली। 



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