Sunday, October 13, 2013

तेरी है ज़मीं तेरा आसमां ( Phailin the Sapphire )


आज की रात या रब
ये कैसा भयावह मंज़र है
स्याह सिसकती तूफानी रात 
सब तरफ गहराता सन्नाटा 
बेहिसाब बरसते बादल 
हवाओं का कर्कश शोर
कड़कती बिजलियाँ 
गरजती विद्रोही लहरें 
सिहरते मासूम लोग 
बिखरे हुए हौसले लिए 
सीनों में धड़कती दहशत 
आँखों में डर और नमी 
तब छूट जाता है विश्वास 
और टूट जाती है आस
मेरे मालिक दया करना 
थम जाए ये तबाही 
और तूफां का कहर 
दुआ सबके जीवन में 
हो जाए नई सहर