Friday, August 2, 2013

ऐ चाँद छुप ना जाना


आकाश की तरफ देख कर
कहा था मैंने
अब मुझे चाँद नहीं चाहिए
चाँद उनको मिलता है
जो जागते हैं रातों को
देखते हैं ख्व़ाब
और बुनते हैं गीत
मैं अब ये सब नही करना चाहती
चाँद अब तुम जाओ
मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हारा आकाश में टंग जाना
और तुम्हारी रोशनी भी
वो मुस्कुरा कर कहता है
नहीं आउंगा परन्तु जानता हूँ
तुम रह भी नहीं पाओगे
बिना ख्व़ाब देखे
और बिना गीत बुने
इसलिए बना रहूँगा
यहीं तुम्हारे इर्द गिर्द
तुम सो भी तो नहीं पाओगे
आकाश को घंटों निहारे बगैर
मुझे देखे बगैर
ज़रा फिर से तो कहो
क्या कह रहे थे
नहीं न मैं 
दुबारा नहीं बोलती 
दुबारा बोलने से
प्यार कम हो जाता है 
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