Monday, July 1, 2013

चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया


गीतों के अदभुत संसार में हम कितनी ही जिंदगियां जी लेते हैं। कुछ गीत बचपन की मासूम यादों में खींच ले जाते हैं तो कुछ स्कूल की मस्ती और मेहनत के दिन याद दिला देते हैं। कुछ कॉलेज के मंजिलों को तलाशते और रूमानियत के पहले अहसास से रूबरू होते दिनों की ......कुछ गीत मन को सुकून देते हैं तो कुछ बेचैन कर देते हैं। 

इसी तरह शहर, कस्बे, गाँव, देश, विदेश सभी की अलग-अलग खुश्बू होती है। जहाँ जाओ वहीं की महक से सराबोर होते भीतर तक उसकी सुगंधि से भर जातें हैं। तकलीफ कोई नहीं है, बहुत कुछ कर दिया है। फिर भी मालूम नहीं अब कितना और क्या करना रह गया है ....कहाँ जाना छूट गया है  .....? ऐसा सभी के साथ होता है, या फिर मेरे ही साथ होता है ........असमंजस में हूँ  ......वैसे ये चैन और आराम मिलता कहाँ है? 
बहरहाल आराम की अभी ज़रा भी जरुरत नहीं है, बहुत कुछ कर गुजरने का हौसला खूब है परन्तु चैन आए दिल को दुआ कीजिए।

बचपन से आज तक माँ से भी सुनती आई हूँ -"क्या खोया रहता है तेरा, क्यूँ हमेशा इतनी बेचैन रहती है ........?" वो समझाती हुई कहतीं है।

जानती हूँ जीवन में स्थिरता होनी चाहिए ....जहाँ स्थिरता होती है वहाँ भटकन नहीं होती। परन्तु - "माँ तुझे क्या पता भटकने में .....खो जाने में....... कितना आनंद है" मैं अपनी अति अल्पभाषी, शांत, सौम्य, ममतामयी, माँ की तरफ देख कर कहती हूँ। 

उनके वक्त की लकीरों और अनुभव के समृद्ध ज्ञान से दमकते सुन्दर चेहरे पर मेरी नज़र अटक जाती है। हमारे बहुत बड़े परिवार के लिए की गई उनकी तपस्या और त्याग और हम बच्चों के पालन -पोषण में उनकी ज़िंदगी के कई दशकों का लेखा -जोखा याद करती हुई फिर मैं उस निराले, दिव्य सफ़र की यादों की गलियों में भटकने लगती हूँ। 

अब भटकना मेरी फ़ितरत जो है .......माँ तुम बने रहना ......

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