Monday, June 24, 2013

बना के क्यूँ बिगाड़ा ऊपरवाले


खोखले होते लड़खड़ाते पहाड़ 
सिसकते, बिलखते, दरकते हुए 
अंततः अपने ही नीचे दब कर मर गए 
पहाड़ तुम तो अटल थे प्रेम की तरह 
फिर विश्वासघाती कौन था 
छल किसने किया 
मानव ने तुमसे ?
या फिर तुमने मानव से ?
हे शिव तुम इतने कठोर कब थे ?
पहाड़ों में रहते पत्थर हो गए 
लोभ, लालच न भरते इंसान में 
जीने की कुछ राह दिखाते  
तो ये दुर्दिन नहीं आते 
तब कुछ भक्त तुम्हारी सुनते 
कुछ तुम भक्तों की सुनते 
अपना हठ त्याग कर हे मानव 
सरल हो जाओ, सहज हो जाओ 
अमन शान्ति का 
एक नया संसार बसाओ 

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