Thursday, June 13, 2013

ये कौन सा दौर है उम्र का


चार्मिंग वीमेन क्लब ऑफ़ फोर्टी प्लस....हाँ यही तो नाम दिया था सरिता ने हम सभी बचपन से साथ में पढने वाली और इत्तफाक से ज़िंदगी के इस मोड़ पर एक -एक कर मिली हुई सहेलियों के ग्रुप को।

कहतें हैं 40 वर्ष के होने पर इंसान समझदार हो जाता है। इस तरह पिछले कुछ वर्ष से में भी समझदार की सूची में स्वतः ही आ गई हूँ। अब मुझे इस बात का पता नहीं चला या फिर किसी ने कहा नहीं..वो अलग मुद्दा है। बेवकूफ हो तुम....ये यदा - कदा सुनने को आज भी मिल जाता है। 

बहरहाल अब मुझे पता है कि उम्र के हिसाब से मैं भी समझदार हो गई हूँ...कहा था मैंने मित्रों से - "अब तुम सभी को मेरी बात माननी चाहिए और मुझ से राय मशवरा लेते रहना चाहिए, मैं समझदारी की उम्र में जी रही हूँ।"

"ओए चुप कर...तू निराली समझदार नहीं हुई है समझी...हम सभी उम्र के इसी दौर से गुजर रहें हैं। आई बड़ी समझदार..." पहली आँखें तरेर देती है। 

"हम सब हमउम्र हैं...इसलिए उम्र के हर पहलू पर हमारा सामान अधिकार है, तू समझदार हुई तो क्या हम नहीं हुए, बात करती है" दूसरी घुड़क देती है। 

"ओ हेलो...तू किसी गलफहमी में मत रहना....तुझे क्या लगता है तू 40 पार करके समझदार हो गई है और हम अभी तक यौवन की अंगड़ाईयां ले रहे हैं। बेवकूफों वाली बात मत किया कर तू .." तीसरी गरजी। 

ये दोस्त लोग भी न कितने गंदे होते हैं....फ्री में समझदार भी नहीं होने देते....छि। लव यू बाल सखियों। 

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