ये ऊपरवाला भी कमाल का कारीगर है। कैसी रंग-बिरंगी दुनिया रचता रहता है। कितने चेहरे, कितने भाव, कितने आकार -प्रकार, आदतें, फितरतें, कितने रिश्ते और उस पर मुझे तो उसने पक्का लाइसेंस दिया है सबको पढ़ते और लिखते रहने का।
उस दिन तुम्हे भी पढ़ दिया था मैंने - "वर्षों से देख रही हूँ तुमको, तुम ज़रा सा भी कैसे नहीं बदले? वक्त, हालात, उम्र, ज़िंदगी के गहरे उतार - चढ़ाव....सभी से तो गुज़रे हो तुम। फिर? वही सौम्यता, धीमी, सधी हुई शांत आवाज में बोलना, धीर-गंभीर, अदम्य विश्वास और ईमानदारी से भरा, ठहरा हुआ व्यक्तित्व, पूरी निष्ठा के साथ कार्य और हर रिश्ते की जिम्मेदारियां ठीक से संभालना। कैसे आज तक इसमें ज़रा भी मिलावट नहीं हुई?"
वक्त और उम्र के साथ तो सभी बदल जाते हैं। कई रिश्ते मैंने बदलते हुए देखें हैं। मैं खुद भी तो कितना बदल गई हूँ। वक्त और हालात के हिचकोलों से जूझती लगातार आज तक बदलती जा रही हूँ। एक विश्वास का रिश्ता जो तुम से है न, बस वही नहीं बदला। विश्वास का रिश्ता सबसे मजबूत रिश्ता होता है, इस बात पर मैं अटल हूँ।
इतने वर्षों में उस दिन पहली बार तुम्हे सिगरेट पीते हुए देखा था। बड़ा रूमानी लगा था। जानती हूँ सेंसर बोर्ड उस सीन को काट देगा। बिगड़ी हुई पब्लिक और बिगड़ जाएगी न..इसलिए...और...
"नहीं मैडम आपको दूसरी स्क्रिप्ट लिखनी पड़ेगी, ये नहीं चलेगी"
"क्या खान भाई, हीरो ओरिजनल है, जेनविन, मिस्टर सुकून पर्सोनिफाईड...."
"बिलकुल नहीं, आज के हालात में जिस फिल्म का हीरो ऐसा होगा वो फिल्म फ्लॉप है ....सुपर फ्लॉप"
"खान भाई थोडा गहरे उतर कर तो देखिए "
"नहीं मैडम पब्लिक रियलिटी देखना पसंद करती है...आज ऐसा आदमी मिलेगा क्या आपको। बताओ हमको एक भी नहीं मिलेगा, लाख ढ़ूढ़ोगे तो भी नहीं मिलेगा..फिर ...काए को ऐसा दिखाने का रिस्क लेना... करोड़ों रूपया दांव पर काए लगाना?"
" ....."
"आप भी मैडम बेकार लिखने लगे हो आजकल..."