St. Beatus Caves - Interlaken Switzerland
जब भी मैं स्विटज़रलैंड जाती हूँ तो बेहद उत्त्साह से भर जाती हूँ। परन्तु जब वहाँ पहुँच कर यूरोप दर्शन पर निकलती हूँ तो मन बेचैन होने लगता है। बर्फ, नदी, हिमाच्छादित पहाड़, हरे-भरे बुग्याल ( मीडोज ), झरने, विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूल, वनस्पतियाँ, फल, बसंत, पक्षी, तितलियाँ, ठंडा सुहाना मौसम, रेस्त्रों, बार, होटल। सब कुछ शानदार। परन्तु ये सब हमारे यहाँ भारत में नहीं हैं क्या ?
हम तो बल्कि उनसे कहीं आगे ही हैं। क्योंकि उनके पास शानदार प्राचीन नक्काशी वाले मंदिर नहीं हैं, हमारी जैसी संस्कृति नहीं है। पिछले साल मैंने स्विस के इन्टरलाकन में थुन लेक के पास एक गुफा देखी थी। सेंट बियातस की गुफा।
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यह खूब बड़ी गुफा है, साफ़ सुथरी। उसको बाहर से खूब सजाया, संवारा गया है। दर्शनीय.....उसके अन्दर कुछ चूने की आकृतियाँ हैं....इसके अलावा ? पता नहीं क्या है ? या फिर मेरी ही मायोपिक आँखें कुछ ढूंढ़ नहीं पाई। फिर भी ढेर सारा टिकिट का पैसा करीब ( 2000/-रू , 35/- Swiss Franc) देकर पता नहीं वहां सैलानी क्या देखने जाते हैं? उत्त्सुकता वश एक बार ठीक है....परन्तु दुबारा? ...फिर? फिलहाल उनका कारोबार खूब चलता है।
हमारे पास ऐसी कितनी ही गुफाएं हैं। कभी ऋषी -मुनि वहां शांति तलाशते हुए पहुंच जाते थे। इसलिए वे जगहें खूब ऊर्जा से भी भरी होती हैं। परन्तु ज्यादा तर या तो वे खोयी हुई हैं, या फिर जो मालूम हैं वे लगभग उपेक्षित पड़ी हैं। दो गुफाएं मैंने और देखी हैं ...पाताल भुवनेश्वर ...पिथोरागढ़ जिले में और वही आस -पास कल्पेश्वर महादेव। जहाँ कपिल मुनि ने तपस्या की थी। देखने समझने को कितना कुछ हैं उनके भीतर।
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पंडितजी ने बताया कि हर शिवरात्री को वहां खूब भक्त जाते हैं। अति संकरे से मार्ग से दोनों ही मंदिर के भीतर जाने पर मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई, परन्तु अति मोटे, भारी बदन के, व अन्य सभी उसके अन्दर कैसे प्रवेश कर जाते हैं? ये शिव या उनके भक्त ही जाने। पंडितजी ने बताया कि वहां से बाबा के दर्शन किये बिना कोई आज तक खाली नहीं लौटा। आस्था और विश्वास दो कमाल के भाव हैं हमारे पास।
नैनीताल, मसूरी, कश्मीर, कौसानी, डलहौजी, खजियार, उत्तराखंड, हिमांचल, कश्मीर, केरला, लद्धाख आदि।सभी जगह तो नैसर्गिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा है ....फिर कहाँ क्या कमी है जो यहाँ आकर दोनों के बीच तुलना करते हुए मन विचलित हो जाता है।
बस कुछ अंतर जो मुझे नज़र आता है वह है उनकी साफ़-सफाई का। हर जगह साफ़, सुन्दर, मेहनत करके सजाई हुई सी। हमें नहीं आती क्या साफ़ सफाई करनी? अपना घर तो हर कोई सजा लेता है, फिर देश को कौन सजाएगा? हम सब ?या फिर टूरिस्म को बढ़ावा देने वाला डिपार्टमेंट? या फिर स्विस वालों को ही हायर कर लें? एक बार कहा था मैंने टूरिस्म वाले गोरे मित्र से ...वह जोर से हँसता हुआ बोला -" yes we are ready, I know you Indians have a lot of money stashed in our banks"
उस समय मैं अपने देश की दुर्दशा पर दुःख के आंसू छुपाए उसकी हँसी में शामिल होने के सिवा और कुछ कर भी नहीं सकी थी। मैं बहुत लोगों को निमंत्रण दे आती हूँ अपना सुन्दर भारत देखने आने का। परन्तु जो धार्मिक और अध्यात्मिक होते हैं वे तो हमारे प्राचीन मंदिर और संस्कृति से बहुत प्रभावित होकर, अगले साल फिर आने का वादा करके जाते और आते रहते हैं। परन्तु अक्सर शिकायत ही करते हैं। गंदगी और धोखेबाजी की शिकायत। उनका क्या हस्र होता है वह लगभग सभी जानते हैं।
एक बड़ा वर्ग स्विटज़रलैंड पैसा जमा करने तो बहुत जाते हैं, या कहूँ उनका बैंक भरने.....उन्हें नहीं दिखता होगा वह सब ? उन्हें नहीं आती होगी शर्म ?