बहुत शोर है बाहर
बहुत व्यस्तता
सब कुछ दौड़ रहा है
रात और दिन बदल रहें हैं
तेज रफ़्तार से
सुबह और शाम नदारत हैं ज़िंदगी से
ये बाहर की दुनिया भी कमाल है
मन लगाए रखती है
फिर भीतर ये खामोशी कैसी
खाली बर्तन सा
बैचैन छटपटाता हुआ
टीसता है कुछ
उस सुबह की उम्मीद करता
जब सुकून की चाय होगी
उस शाम का इंतज़ार करता
जब यादों का सहारा होगा
उस दिन भीतर शोर होगा
चिड़िया के कलरव सा
संगीतमय शोर
और होंगी ढेरों अनकही बातें
कहने को