Monday, March 18, 2013

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है


बहुत शोर है बाहर 
बहुत व्यस्तता 
सब कुछ दौड़ रहा है 
रात और दिन बदल रहें हैं 
तेज रफ़्तार से 
सुबह और शाम नदारत हैं ज़िंदगी से
ये बाहर की दुनिया भी कमाल है 
मन लगाए रखती है 
फिर भीतर ये खामोशी कैसी 
खाली बर्तन सा 
बैचैन छटपटाता हुआ 
टीसता है कुछ 
उस सुबह की उम्मीद करता 
जब सुकून की चाय होगी 
उस शाम का इंतज़ार करता 
जब यादों का सहारा होगा 
उस दिन भीतर शोर होगा 
चिड़िया के कलरव सा 
संगीतमय शोर 
और होंगी ढेरों अनकही बातें 
कहने को