एक दिन ऐसे ही खड़े होकर
हम देखेंगे देर तक
इस विशाल समुद्र को
लहरों को भी देखेंगे
आते जाते मचलते हुए
खिलखिलाते फिसलते हुए
और साकार कर लेंगे
इन्ही की अठखेलियों में
अपने सपनों को भी
सुन यही सपना तो देख रहे हैं न हम
अपने भीतर हहराते हुए समुद्र को लेकर
एक दिन होंगे हम दोनों
यहीं पर फिर से
उस दिन कश्ती बना लेंगे
बचपन की यादों की
और बहा देंगे उसे फिर इसमें
हमेशा के लिए
दुबारा कहाँ आएगा अब
वो बचपन