कभी यूँ भी होता है
जब चाँद ओढ़ लेता है बादल
रात हो जाती है सड़कों सी लम्बी
मुरझा जाता है बसंत
हवा सुनाने लगती है उदास नग्मे
ऐसे व्यथित दिनों के लिए
कुछ यादें हैं मेरे पास
जो संभाली थी मैंने उन दिनों
जब भोर की हवाएं सुनाती थी
प्यार के नगमें
शाम सहलाती थीं
अपनी बाहों में भर के
रात तब भी लम्बी थी
परन्तु झांकता था चाँद हर रोज़
मेरी खिड़की से
पीछा करता था ख्वाब तक
बेझिझक, बेआवाज़
तुम हो तो सब कुछ है
बातें हैं मुलाकातें हैं
और हैं यादें
होना ही अपने आप में
सब कुछ होता है
कुछ ना होता तो क्या होता