Friday, April 5, 2013

ऐ ज़िंदगी गले लगा ले


आजकल १८  घंटे काम को दे दिए हैं, फिर भी शरीर कभी नहीं थकता .....परन्तु यदा -कदा  दिल और दीमाग थक जाता है। कितना कुछ सोचना होता है बेचारे को .....घर का, बाहर का , दुनियादारी, रिश्तेदारी, समाज, मित्र और पता नहीं क्या-क्या ........देर शाम तक आते-आते मन बोझिल हो जाता है। तब याद आते हैं वो कुछ लम्हे जो बेइन्तहा सुकून दे जाते थे। किसी प्रिय मित्र से बातें या फिर किसी पसंद की पुस्तक के कुछ पन्ने। बीते कुछ दिनों से ये भी नहीं हो पा रहा है। 

अजीब उलझन और कशमकश से रूबरू होती कुछ तय नहीं कर पा रही हूँ। होता है .....लगता है ज़िंदगी की पुस्तक में एक नया अध्याय और जुड़ रहा है। 

ऐ जिंदगी अब तो बहुत उम्र हो चली है, बहुत वक्त गुज़र गया है कब तक पाठ पढाओगी .....कब तक परीक्षा दूंगी? कोई बात नहीं तकलीफ सहने और धैर्य रखने का खूब अनुभव है मुझे ........तुम भी आजमाते रहो .....हम भी निभाते रहेंगे .......हम कभी हारे हुए खिलाड़ी न थे न बनेंगे। तुम अपने दाँव चलते रहो, हम अपनी राह बनाते रहेंगे। 

चलना ही ज़िंदगी है इसलिए तुम भी चलो ........हम भी ................चलते रहेंगे ........

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