Wednesday, November 21, 2012

वहशतें दिल क्या कहूँ


सब कुछ होते हुए भी कुछ न होने की अपूर्णता / कुछ न होते हुए भी सब कुछ होने की पूर्णता। ये रिश्ते हमेशा से ही मुझे उलझाते रहें हैं......

मुझे जब भी किसी पारिवारिक समारोह में जाना होता है तो जब से निमंत्रण आता है तभी से मुझे बुखार जैसा भी कुछ साथ ही आता हैl सारे रिश्तेदार, संबंधी और मित्र इस मुद्दे पर मुझसे नाराज़ ही रहते हैंl वैसे अपने अनुपस्थित होने का मेरे पास कभी कोई जवाब नहीं होता है l झूठ गढ़ना मुझे सख्त नापसंद है और सच बोलने के लिए मेरे पास कोई दमदार वजह नहीं होती।

भीड़ में भी अकेले महसूस करना और भीड़ से कतराना मुझे बहुत अच्छा लगता है। ना जाने ये लोग कहाँ-कहाँ से सवाल लेकर आते हैं जो कभी ख़त्म ही नहीं होते। कितना बोलना पड़ता है। इसलिए पहचाने जाने से बचना ही सही लगता है। 

ऐसे हालात देख कर मुझे अब ये तो समझ आने लगा है क्यूँ 'एमिली डिकिन्सन' ने अकेला रहना चुना होगा। ना कोई सवाल ना जवाब.......सारा वक्त होता है अपने हाथों में। जो जी में आए जी भर कर करो। 

अब कुछ समझदार सच्चे मित्रों और संबंधियों ने मुझे बिना किसी नाराज़गी के कुछ मोहलत दे दी है। मेरी उपस्थिति अनिवार्य हो अब ऐसा नही होता......और मुझे चंद सुकून की सासें भी नसीब हो गईं हैं.......


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