"हवाओं के विपरीत चलने की आदत है मुझे
तुम हवाओं के साथ चल लो तो भी कोई बात बने "
हर छोटे बड़े अवसरों को पकड़ कर आनंद से जिया जाए तो हर दिन एक उत्सव बन जाएगा। फिर उत्त्सव मनाना किसी को बुरा लगता हो । ऐसा तो नहीं देखा ज़माने में...
जब लोगों को कहते सुनतीं हूँ हिन्दी दिवस ढोंग है, ढकोसला है तो सोचती हूँ रोने से तो अच्छा है कमस कम एक दिन ही सही होली, दीवाली की तरह इसे भी त्यौहार समझ कर ही मना लें। वैसे ही ज़िंदगी देश के अलग-अलग मुद्दों से बेरंग हुई जाती है....
मैं विज्ञान की विद्यार्थी रही हूँ। हिन्दी मेरा विषय नहीं रहा परन्तु हिन्दी से लगाव हमेशा से था, है और रहेगा। बचपन में जब कॉन्वेंट में पढ़ते थे तब हमें हिन्दी में बोलने पर फाइन देना पड़ता था। आसपास और घर पर हम सब हिन्दुस्तानी और देशभक्ती के ज़ज्बे से ओत-प्रोत होते थे और स्कूल में हम अंग्रेज़। हुआ यूँ कि जितना फाइन देते गए उतना हिन्दी से प्रेम बढ़ता गया। तब तो लगता था कि अँगरेज़ तो चले गए और पता नहीं क्यूँ ये बवाल हमारी जान को छोड़ गए।
फिर मित्रों के साथ सलाह बनाई..जब भी सिस्टर कोई बात समझाए तो ऐसे स्वांग करेंगे जैसे उनकी बात पूरी तरह से समझ ही नहीं आ रही है। हमारी इस हरकत पर वे प्यारी सी सह्रदय ममतामयी सिस्टर कभी -कभी खीज भी जाती थी। वक्त के साथ नैतिक शिक्षा की उन सिस्टर ने हमें अपनी बात समझाने के लिए हिन्दी सीखनी शुरू कर दी टूटी फूटी हिन्दी में वे हमें अपनी बात समझाती थीं।
"तुम लोग बिग मैन बनेगा, डीसेंट ,वैल मैनर्ड बनेगा...इंग्लिश पढ़ेगा, समझ गया?" प्यार से अपनी बात समझाती सिस्टर इसलिए मुस्कुराती कि हम बच्चे ध्यान से उनकी बात सुन समझ रहें हैं। कनखियों से एक दूसरे को देखते, नासमझ बनते मुस्कुराते तो हम शैतान बच्चे भी थे परन्तु इसलिए कि सिस्टर अच्छी हिन्दी सीख रहीं थीं...
'सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं '