Ria Sharma (Sehar)
Passion for reading, writing and traveling .
Tuesday, September 4, 2012
वादियाँ मेरा दामन
अहसास भी भीग जाते
हैं
इस भीगी सुबह के साथ
तब छलक जाते
सारे ख़याल शब्द बनकर
सब तरफ फ़ैली
भीगी सुबह
पत्तों पर अटकी
पेड़ों से टपकी
मिट्टी में बसी
भीगा देती है मुझे
भीतर तक
और मुस्कुरा कर
चुपके से पूछ लेती है
भीगे तो नहीं ?
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